आजाद भारत में तो आम जनता की इच्छा है कि कोई भगत सिंह की तरह जन्म लेकर उसकी बेड़ियों को काटने का कार्य करे , उच्च आदर्शो वाले क्रान्तिकारियो की पैदावार पड़ोस के घर में हो आम जन यही चाहते है | धन्य है वो परिवार , वो माताएं जिन्होंने अपनी कोख से पैदा की संतानों को क्रांति मार्ग पर चलने को प्रेरित किया | उत्तर-पश्चिम के सीमांत प्रान्त के मर्दन जनपद के गल्ला ढेर नामक स्थान पर गुरुदास मल के पुत्र रूप में सन १९१२ में बालक हरिकिशन का जन्म हुआ था | गुरु दास मल की माँ यानि कि हरिकिशन की दादी माँ बचपन से ही क्रान्तिकारियो के किस्से कहानियो के रूप में बालक हरिकिशन को सुनाया करती थी | क्रांति का बीज परिवार ने ही बोया | क्रांति बीज को पोषित करके , हरा-भरा करके माँ भारती के कदमो में समर्पित पिता गुरुदास मल ने किया | काकोरी कांड का बड़े लगन व चाव से अध्ययन हरिकिशन ने किया | रामप्रसाद बिस्मिल व अशफाक उल्लाह खान हरिकिशन के आदर्श बन गये | दौरान-ए-मुकदमा (असेम्बली बम कांड ) भगत सिंह के बयानों ने हरिकिशन के युवा मन को झक झोर दिया | भगत सिंह को हरिकिशन अपना गुरु मानने लगे |
यह वह दौर था जब ब्रितानिया हुकूमत द्वारा पुरे देश में क्रान्तिकारियो पर दमन अपने चरम पर था | कांग्रेस के नेतागण अहिंसात्मक आन्दोलन के नाम पर क्रूर और चालाक अंग्रेजो से मानो नूराकुश्ती कर रहे थे | और तो और क्रान्तिकारियो के रास्ते में भी यही कांग्रेसी ही आ जाते थे | इन्ही परिस्थितो में क्रांतिपुत्र हरिकिशन ने पंजाब के गवर्नर ज्योफ्रे डी मोरमोरेंसी का वध करने का निश्चय किया |
पंजाब विश्विद्यालय का दीक्षांत समारोह २३ दिसम्बर , १९३० को संपन्न होना था | समारोह की अध्यक्षता गवर्नर ज्योफ्रे डी मोरमोरेंसी को करनी टी और मुख्य वक्ता डॉ राधा कृष्णन थे | अपनी पूरी तैयारी के साथ हरिकिशन भी सूट-बूट पहन कर दीक्षांत भवन में उपस्थित थे | डिक्शनरी के बीच के हिस्से को काटकर उसमे रिवाल्वर रखकर समारोह की समाप्ति का इंतज़ार करने लगे | यह ध्यान देने की बात है कि हरिकिशन को गोली चलाने की ट्रेनिंग उनके ही पिता गुरुदास मल ने स्वयं ही दी थी | हरिकिशन एक पक्के निशानेबाज बन गये थे | समारोह समाप्त होते ही लोग निकलने लगे | हरिकिशन एक कुर्सी पर खड़े हो गये और उन्होंने गोली चला दी , एक गोली गवर्नर की बांह और दूसरी पीठ को छिलती हुई निकल गयी | तब तक डॉ राधा कृष्णन गवर्नर ज्योफ्रे डी मोरमोरेंसी को बचाने के लिए उनके सामने आ गये | अब हरिकिशन ने गोली नहीं चलायी और सभा भवन से निकल कर पोर्च में आ गये | पुलिस दरोगा चानन सिंह पीछे से लपके और वे हरिकिशन का शिकार बन गये , एक और दरोगा बुद्ध सिंह वधावन ज़ख़्मी होकर गिर पड़ा | हरिकिशन अपना रिवाल्वर भरने लगे परन्तु इसी दौरान पुलिस ने उन्हें धर दबोचा | इस तरह उस समय एक ब्रितानिया शोषक-जुल्मी की जन किसने बचायी और वे कितने बड़े देशभक्त थे , यह इस घटना से समझा जा सकता है | अब हरिकिशन पर अमानवीय यातनाओ का दौर शुरु हो गया |
लाहौर के सेशन जज ने २६ जनवरी , १९३१ को हरिकिशन को मृत्यु दंड दिया | हाई कोर्ट ने भी फैसले पर मोहर लगायी | जेल में दादी ने आकर कहा — हौसले के साथ फांसी पर चढ़ना | हरिकिशन ने जवाब दिया — फिक्र मत करो दादी | शेरनी का पोता हूँ | पिता ने जेल में तकलीफ पूछने की जगह सवाल दागा — निशाना कैसे चुका ? उत्तर मिला — मैं गवर्नर के आस पास के लोगो को नहीं मरना चाहता था इसीलिए कुर्सी पर खड़े होकर गोली चलाई थी | परन्तु कुर्सी हिल रही थी | उसी जेल में भगत सिंह भी कैद थे | भगत सिंह से मिलने के लिए हरिकिशन अनशन पर बैठ गये | अनशन के नौवें दिन जेल अधिकारिओ ने भगत सिंह को हरिकिशन की कोठरी में मिलने के लिए भेजा | अपने गुरु से मिलकर हरिकिशन बहुत प्रसन्न हुये | आपके पिता गुरुदास मल को भी गिरफ्तार कर लिया गया | यातनाएं दी गयी जिससे उनकी मृत्यु हो गयी | हरिकिशन को ही छोटा भाई भगतराम सुभाष चन्द्र बोष को रहमत उल्लाह के छद्म नाम से अफगानिस्तान तक छोड़ने गया था | पूरा परिवार ही देश की आज़ादी में अपना योगदान और बलिदान देने में जुटा हुआ था |
९ जून , १९३१ को प्रातः ६ बजे लाहौर की मियां वाली जेल में इन्कलाब जिंदाबाद के नारे गुंजायमान होने लगे और फिर एक तूफान आने के बाद की खामोश छा गयी | वीर युवा हरिकिशन आज़ादी की राह पर फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया गया |
२२ वर्षीया युवा हरिकिशन ने बयान दिया था — अंग्रेजो के दमन चक्र से मेरा विश्वास अहिंसा से उठकर अशास्त्र क्रांति में द्रित हुआ है | अंग्रेज भारगवर्नर ज्योफ्रे डी मोरमोरेंसी त को कभी स्वतंत्र नहीं होने देंगे | मैं गवर्नर ज्योफ्रे डी मोरमोरेंसी को कठोर दमन के लिए उत्तरदायी मानता हूँ | दीक्षांत समारोह में गवर्नर ज्योफ्रे डी मोरमोरेंसी को दंड देना इसीलिए उचित था | उसे दण्डित होते देखने के लिए विशिष्ठ व्यक्तियों का समुदाय उपस्थित था |
आइये , इस रणबांकुरे हरिकिशन की अंतिम इच्छा भी जान लीजिये — मैं इस पवित्र धरती पर तब तक जन्म लेता रहूँ जब तक इसे स्वतंत्र ना कर दूँ | यदि मेरा मृत शरीर परिवार वालो को दिया जाये तो अंतिम संस्कार उसी स्थान पर किया जाये जहा पर शहीद भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु का संस्कार हुआ था | मेरी अस्थियाँ सतलुज में उसी स्थान पर प्रवाहित की जाये जहा उन लोगो की प्रवाहित की गयी है | लेकिन अफ़सोस ही कर सकते है कि ब्रितानिया हुकूमत ने हरिकिशन के पार्थिव शरीर को उनके परिवार को नहीं सौंपा और जेल में ही जला दिया |
ब्रितानिया हुकूमत की दरिंदगी और हिंदुस्तान के गद्दारों के नापाक इरादों के शिकार बलिदानी हरिकिशन की शहादत की बेला पर उसे अंतिम विदाई देने वाला कोई था तो सिर्फ ओस की बुँदे | मात्रभूमि की आज़ादी के मकसद में क्रांति के उच्च आदर्शो की स्थापना करने वाले सभी सेनानी अपने आत्मोसर्ग की भावना के कारण युगों युगों तक क्रान्तिकारियो के लिए प्रेरणा के पुंज बन कर क्रांति पथ को आलोकित करते रहेंगे |
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