स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा के अवतरण की कहानी

स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा के अवतरण की कहानी...

गंगा के अवतरण की एक पौराणिक कथा बड़ी प्रचलित है । भगीरथ ने स्वर्ग में बहने वाली गंगा के प्रवाह को पृथ्वी पर लाया । भगीरथ की कथा सभी जानते हैं । एक महाराजा सगर थे । पुराण बताते हैं कि कपिल मुनि के शाप के कारण महाराज सगर के साठ हजार पुत्र जलकर भस्म हो गए । ऋषि से पूछा कि उनका उद्धार कैसे होगा ? तो उन्होंने बताया कि स्वर्ग में बहने वाली नदी गंगा है, उसका पानी यहाँ आएगा, उसका स्पर्श अगर इनको होगा तो उनका उद्धार हो जाएगा । सगर महाराज तो चले गए । फिर उनके पुत्र अंशुमान ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या की । लेकिन सफलता नहीं मिली । अंशुमान के पुत्र यानि सगर महाराज के पौत्र भगीरथ थे । उन्होंने तपस्या की और स्वर्ग से गंगा को वे पृथ्वी पर ले आए । कहते हैं कि बीच में शंकर की जटा में गंगा उलझ गई थी । तो वहाँ से इसे निकाला । जन्हु नाम के एक ऋषि की टांग में फँस गई । तो वहाँ सेंध लगाकर उसको बाहर निकाला तबसे गंगा पृथ्वी पर बह रही है ।

पुराण की कथाएँ साधारणतः रुपक कथाएँ होती हैं । इस रूपक कथा का मतलब क्या है ? गंगा स्वर्ग में बहती थी, यानि कहाँ बहती थी ? वह तिब्बत में बहती थी । जैसे आज ‘ब्रह्मपुत्र’ बहता है । आधा ब्रह्मपुत्र यानि करीब ९०० मील वह तिब्बत में बहता है, जिसके पानी का कोई उपयोग नहीं है । बर्फ ही बर्फ है । बाद में असम होकर भारत में आता है । गंगा तो पूरी की पूरी तिब्बत में से बहती होगी । तिब्बत का ही पुराना नाम ‘त्रिविष्टप्’ है जिसका एक अर्थ संस्कृत में, ‘स्वर्ग’ भी होता है । अब सगर के ६० हजार पुत्रों का अर्थ क्या है ? सगर राजा के राज्यकाल में अकाल पड़ा होगा । ऐसा कहते हैं कि जब आकाश में कपिल नक्षत्र का उदय होता है तब अकाल आ जाता है, पानी नहीं बरसता । लोग मरते हैं । उस अकाल में साठ हजार लोग मर गए । राजा प्रजा का पिता होता है । प्रजा का अर्थ समाज भी है । “प्रजा स्यात् सन्ततौ जने” ऐसा शब्दकोश में बताया है । ६०,००० लोग मर गए । भगीरथ ने देखा कि गंगा का जल आएगा कैसे ? तपस्या की । इंजीनियरिंग स्किल या अभियंता की उद्यमशीलता ने एक बिन्दु खोज निकाला । जिसको तोड़ने से गंगा का सारा पानी इस ओर आया । बहुत वेग से आया । कहते हैं शंकर ने जटा में धारण किया । मतलब पहाड़ियों में पानी उलझ गया । उसमें से निकला । पता नहीं कब सगर महाराज हो गए, कब भगीरथ हो गया । लेकिन आज तक जहाँ उत्तरप्रदेश, बिहार में गंगा बहती है वहाँ अकाल नहीं होता ।

रूपक शब्द युग्म
स्वर्ग - त्रिविष्टप् (तिब्बत)
(साठ हज़ार) पुत्र - (साठ हज़ार) प्रजा
(भगीरथ की) तपस्या - (भगीरथ की सतत) उद्यमशीलता
शंकर की जटा - हिमालय की पहाड़ियां
कपिल मुनि - कपिल नक्षत्र
(कपिल मुनि का) शाप - (कपिल नक्षत्र का) प्रभाव
साठ हज़ार पुत्र जलकर भस्म - साठ हज़ार प्रजा की अकाल से मृत्यु

पिछले एक सहस्त्र वर्षों की पराधीनता के कारण हम पौराणिक कथाओं के भाव को नहीं समझ पाए । समय की मांग है कि हम इन कथाओं से सही अर्थ को समझें और भगीरथ के ही तरह अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार समाज कल्याण के लिए सतत् लगे रहें ।
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Posted by Unknown Monday, June 17, 2013

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